पवित्र तट और प्रथम साधना कार्यक्रम: पवित्र तट, यहीं जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने प्रथम साधना कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। यह वही परम पवित्र स्थान है, जहाँ श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण लीला घटित हुयी थी; इसी स्थान पर यशोदा मैया को श्रीकृष्ण के मुख में अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड के दर्शन हुये थे।
साधना का महत्त्व: साधना का अर्थ है-भगवान् के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम आदि में मन को लगाने का अभ्यास करना और इस क्रिया से मन को शुद्ध करना जो मानव जीवन का परम-चरम लक्ष्य है। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपने प्रेम रस सिद्धान्त ग्रंथ में कहा है कि साधना, जीव का अभिन्न अंग है, जिसमें साधक को श्रीराधाकृष्ण का रूपध्यान करते हुये और आँसू बहाते हुये उनको रोकर पुकारना है।
जगद्गुरु कृपालु जी महाराज के नियम और उपाय: जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने साधना के कुछ विशेष नियम भी बनाये, जैसे रूपध्यान करते हुये कीर्तन आदि करो, सभी साधकों का सम्मान करो, अपने को अति पतित, दीन-हीन मानो। भगवान् से उनका प्रेम, उनका दर्शन माँगो और संसार का कोई सामान न माँगो। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने मौन व्रत का भी आदेश दिया। खाते, सोते, उठते, बैठते; भगवान् का नाम स्मरण बना रहे, इसके लिये उन्होंने अनेक उपाय बनाये। जैसे खाने वाले खाद्य पदार्थों के नाम भगवान् के नाम पर रखे गये। चपाती को राधे-राधे, चावल को गौर-हरि, दाल को दामोदर, सब्जी को श्याम सुन्दर इत्यादि।
जगद्गुरु कृपालु जी महाराज का साधना कार्यक्रम:जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने समय और साधकों की आवश्यकतानुसार साधना कार्यक्रम में परिवर्तन किये। प्रतिवर्ष साधना कार्यक्रम भक्ति धाम, मनगढ़ में आयोजित किया गया, जहाँ देश-विदेश से हज़ारों साधक, साधना का विशेष लाभ लेने के लिये आने लगे। साधना सुबह 4 बजे से प्रारम्भ होकर रात्रि दस बजे तक चलती, जिसमें बीच-बीच में भोजन, विश्राम आदि के लिये समय दिया जाता। दिनचर्या सुबह प्रार्थना व आरती से प्रारम्भ होती, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज स्वयं प्रार्थना आदि में उपस्थित होते और साधकों को भक्ति धाम की परिक्रमा में ले जाते।
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की दया, करुणा और उदारता का वर्णन शब्दों में व्यक्त करना असम्भव है। उनके अवतार का एकमात्र उद्देश्य था-जीवों को भगवान् की ओर ले जाना। साधना कार्यक्रम के समय जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज प्रवचन, कीर्तन, प्रश्नोत्तर आदि के माध्यम से साधकों का मार्गदर्शन करते। वे अपने जगद्गुरूत्तम स्वरूप को भुलाकर साधकों से पिता और सखा का व्यवहार करते हुये उनकी शंकाओं का समाधान करते। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के अनुसार भक्ति करने के अनेक प्रकार हैं, जिस किसी भी प्रकार से मन भगवान् में लग जाये, बस वही भक्ति है। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज संकीर्तन की नवीन पंक्तियाँ बनाते व स्वयं उनकी धुन भी तैयार करते, जो साधकों के हृदय में भक्ति रस का संचार करतीं। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का असीम प्रेम व कृपा, साधना शिविर में प्रवाहित होते दिखाई पड़ते। वर्तमान में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की सुपुत्रियाँ, जो जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षायें हैं, वह अपने जगद्गुरु पिता द्वारा स्थापित साधना शिविर कार्यक्रम की परम्परा का निर्वहन अत्यन्त सुचारु रूप से कर रहीं हैं।
भक्ति-धाम में साधना शिविर: वर्ष 2015 में साधना शिविर कार्यक्रम के आयोजन की 51वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में भक्ति-धाम, मनगढ़ में स्थित प्रथम साधना भवन में 25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक भक्ति महोत्सव साधना शिविर का आयोजन किया गया।
जगद्गुरु कृपालु परिषत् वर्ष में अनेक बार इस प्रकार के साधना कार्यक्रमों का आयोजन कर साधकों को भक्ति पथ पर अग्रसर करने में निरन्तर योगदान दे रही है। "गहन संध्या के 50 वर्ष" ने हमें यह दिखाया है कि साधना का सफर कैसे जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के मार्गदर्शन में अद्भुत है। वर्तमान में उनकी सुपुत्रियाँ इस साधना कार्यक्रम की परम्परा को सुरक्षित रख रही हैं और अनेक साधना शिविरो के माध्यम से भक्तों को आत्मिक विकास की दिशा में मार्गदर्शन कर रही हैं। साधना के इस पथ पर चलने से साधक न केवल अपने जीवन को सकारात्मक रूप से बदलता है, बल्कि उसे भगवान के साथ सांगोपांग संबंध स्थापित करने का अद्वितीय अवसर भी प्राप्त होता है।
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